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पुर्नजन्म( हमारा मोर्चा में प्रकाशित 26-3-2020)

  1.    ई बुढ़वा झगड़ा रोप कर अपने तो दऊ पर गया आउर जिनगी भर का किचाइन माथे पर डाल गया, इमिरतिया बरसातू को साइकिल से आते देख कर भुनभुना रही थी। चुप रह तनि पानी त दे.....बरसातू अपनी साइकिल मड़ई के किनारे खड़ी करके झिलंगही खटिया पर ठहते हुए बोला। आज भी दिन भर कचहरी मे ही बीत गया था उसका। वकील से भी बतकुच्चन हो गया पता नही काहे जब तारीखे पड़ना था, तो दिन भर बैठा कर एक दिन की मजूरी मरवाने का का मतलब, उसने पानी लेकर खड़ी अपनी पत्नी से बोलते हुए लोटा थाम लिया। ठेकेदरवा कल फिर टोकेगा कि या तो मुकदमा लड़ लो या राजगिरी करो। फिर सोचा उसका भी दोष नही है, जिसका काम फंसेगा उ तो बोलेगा ही। 2. मसला पुराना है, बरसातू के बाप को भाइयों से बटवारे मे जो हिस्सा मिला था, उससे सटी हुई थोड़ी सी सार्वजनिक जमीन भी थी। अतिरिक्त सार्वजनिक जमीन के कारण उसके हिस्से की जमीन रकबे मे थोड़ी बड़ी हो गयी थी। जमीन के उस अतिरिक्त हिस्से पर पर बरसातू के बाप ने अपने बूढ़ी गाय और बकरी की नाद, चरनी बना ली थी। उसी अतिरिक्त हिस्से के लिए भाइयों मे आपस मे काफी गाली-गलौज हुई थी, उनकी पत्नियों ने भी महीनों इस गाली-गलौज को विस्
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बम्बई में का बा बनाम बिहार में का बा

                 कोरोना त्रासदी की रचना्त्मक अभिव्यक्तियां विभिन्न प्रकार के माध्यमों से लोकप्रिय हो रहीं है। जिसमें आजकल एक चर्चित रैप बम्बई में का बा भी काफी लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित और मनोज बाजपेयी द्वारा अभिनीत यह रैप चन्द घण्टों में ही हिन्दी पट्टी पर छा गया मानो सड़क पर भूखे प्यासे घिसटते हुए घर वापस आए पूरबिया के आहत स्वाभिमान पर मरहम लगा गया।     इस रैप में पुरबिया ने वर्गफुट में घमण्ड करने वालों को बताया कि हमलोग बिगहा (जमीन के क्षेत्रफल की एक देशज इकाई जिसमें एक बीघे या बिगहे में लगभग 17452 वर्गफुट होता है) में अपना घर दुआर रखते हैं। यानि इस रैप का नायक उस बिहार का प्रतिनिधित्व नही कर रहा है जहां के ग्रामीण क्षेत्र में 65 प्रतिशत परिवार भूमिहीन है अपितु यह नायक बिहार के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जिसके पास इतना भूगोल है कि वो महानगर में वर्गफुट में जीने वालों की खिल्ली उड़ा सके। सामाजिक संरचना में यह हैसियत बिहार और उत्तर प्रदेश   में    पूर्वाचंल के सवर्ण और ताकतवर पिछड़े समुदाय से आने वाले  उस  विपन्न  युवक की है जिसकी सारी प्रतिभा

मुस्लिम दुनिया के नास्तिकों के सपने

  बीसवीं शताब्दी में गैर मुस्लिम विश्व के बहुत बड़े हिस्से में राज्य व्यवस्थाओं नें धर्म निरपेक्षता को एक नीति निर्देशक सिद्धान्त के रुप में स्वीकार किया था। इनमें से अधिकांश क्रूसेड की व्यर्थताओं से सीखे इसाई बहुल राज्य थे। इन देशों के अतिरिक्त लोकतांत्रिक प्रणाली वाले भारत और कम्यूनिष्ट प्रणाली वाले चीन जैसे विशाल देश भी धर्मनिरपेक्ष विश्व के भूगोल में सम्मिलित थे, जिसके कारण धर्मनिरपेक्षता सर्वस्वीकार्य मूल्य की तरह दिख रही थी। यद्यपि भारत और चीन कृषि आधारित जीवन प्रणाली वाले पिछड़े राज्य थे फिर भी इनके नेताओं ने अपने समाजों में धर्मनिरपेक्षता की स्वीकार्यता स्थापित कराया और राज्य व्यवस्थाओं को एक हद तक धर्मनिरपेक्ष आधार पर क्रियान्वित किया। इसका सुपरिणाम यह निकला कि इन राज्यों से निकले प्रवासियों ने यूरोप और अमेरिका जैसे समृद्ध और आधुनिक मुल्कों के नागरिको के कदम से कदम मिलाकर इन आधुनिक मुल्कों में सफलता के नए मानदण्ड स्थापित किए। इस धर्मनिरपेक्ष विश्व के बाहर एशिया और अफ्रीका के बड़े हिस्से में स्थित मुस्लिम जगत में आधुनिक सुविधाओं का उपभोग करते हुए १४सौ साल पुरानी दुनिया की ध

2019 का भाष्य

बढ़ते नगरीकरण और फैलते मध्यवर्ग के श्रममुक्त होते घण्टों को कर्मकाण्डीय धार्मिक जीवन भर रहा है। यह नवनागरी कर्मकाण्डी समाज , खेतिहर जीवन के धार्मिक समाज से भिन्न है। खेतिहर समाज का धर्म ,   जीवन के सीमित संसाधनों में किसी तरह से अपने दुख को संतोष में बदलने की कला देता था लेकिन सम्पन्न हो रहे भारत के मध्यवर्ग की नयी   धार्मिेक शैली उनको अपनी उपलव्धियों के अभिव्यक्ति का कर्मकाण्डीय कार्यक्रम दे रहा है। इस नए धर्म की जकड़बन्दी को प्रगाढ़ करने के लिए इसके दृष्टिपथ में भिन्न धार्मिक समुदायों के प्रति भय की निरन्तर सर्जना , कुछ सप्रयास और कुछ भिन्न धर्म की गतिविधियों के फलस्वरुप निरन्तर जारी है। इस सम्बन्ध में एक मित्र का कथन उल्लेखनीय है कि बम्बई फिल्म जगत की उदार जीवन शैली में एक प्रसिद्ध फिल्म संगीतकार की बेटी के बुर्कानशीनी का शौक या श्रीलंका मे करोड़पति मुस्लिम परिवार द्वारा अपने धार्मिक विश्वासों के कारण सैकड़ो लोगों को कत्ल किया